आज हम इस लेख के जरिये जानने वाले है कर्म बड़ा या भाग्य जब की आपने काफी बार ऐसे शब्द तो सुने ही होगे लेकिन इनका अर्थ कुछ और ही सुना होगा तो आज हम इसके बारे में पूरी जानकारी जानने वाले है तो आईये जानते है

भगवतगीता में भगवान श्री कृष्ण ने फल और कर्म के बारे में कुछ कहा है जो की ये कहा है कर्म करो फल की चिंता मत करो यानि की जब हम किसी भी कार्य को करते है जैसे की हम पानी का गिलास उठाते है तब हम सुचते है की ये पानी का गिलास गिर नही जाये या फिर जब हम खाना बना रहे होते है तब हमारे मन में अनेक प्रकार की बाते आती है जैसे की खाना अच्छा बने खाना खाने वाले को खाना अच्छा लगे अनेक प्रकार के कार्य को करते समय हम सुचते रहते है

अगर आज और यही से इस बात को समझ लेते है तब यही से आपका जीवन सफल बन सकता है

कर्म करो फल की चिंता मत करो

गीता में श्री कृष्ण ने यह नही कहा जब की यह लिखा गया की कर्म करो फल की चिंता मत करो जब की संस्क्रत में एक शलोक लिखा होआ वो ये है की

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।              
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि 

कर्मण्येवाधिकारस्ते यानि की आपका अधिकार कर्म करने में है मा फलेषु कदाचन इसका मतलब ये है की कर्म के फल में आपका अधिकार ही नही है

  • 1 यश
  • 2.   अपयश
  • 3.   हानि
  • 4.   लाभ
  • 5.   जीवन
  • 6.   मरण

जब ये 6 चीजे आपके हाथ में ही नही है जब ये प्रकति के हाथ में जब की हम यह भी मानते है ये भाग्य के हाथ में जैसे की हम कहते है की हमारे भग्य में यह कार्य करना लिखा ही नही है या फिर किस्मत के हाथ में और लोग कहते है की आपके किस्मत में यह कार्य करना नही लिखा है इत्यादि

कर्मवादी और भाग्यवादी इनका मतलब क्या होता है

1.   कर्मवादी इसको कहते है Law of Karma यानि की जैसा करेगे वेसा फल मिला

2.   भाग्यवादी जब की जहा भाग्य साथ देता है वहा विध्या परिश्रम महन्त सब धरे के धरे रह जाते है

जब की ये दो तरह की विचार धाराए है जब ये दोनों तरह की विचार धारा गलत है क्यों की दोनों तरह की विचार धारा के लोग आदि-आदि बात कह रहे है जब की कर्म हमारे हाथ में यानि की में क्या खाओ कितना खाओ ये मेरे हाथ में जब की इस चीज को खाना के बाद ये पचे गा की नही ये मेरे हाथ में नही है

कर्म क्या है

कर्मण्येवाधिकारस्ते एक बात से समझते मान लीजिये आप एक धनुर्धर है यानि की आप बहूत अच्छे से धनुष को चला लेते है यहा पर आप निशाना लगा रहे एक हिरण पर और निशाना लगा कर तीर को छोड़ रहे है जब की आपको पता है मेने किसी भी प्रकार के निशाने को मिश नही करता हो और जैसे ही निशाना लगा कर तीर को छोड़ दे रहे है और तीर के सामने से हिरण हट जाती है तो यहा पर आपका निशाना चुक जाता है तो यहा पर क्या आपकी जिमेधारी है तब आपकी कोई जिमेधारी नही है

क्यों की तीर छोटने के बाद हिरण हट जाता है जब की यहा पर आप समझते है की आपका काम यह की आपको अपने कार्य मर महंत करते रहना है सफलता मिलना आपके हाथ में नही है

जब की कृष्ण कह रहे है की

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि 

आपको फल पर ध्यान नही लगाना है कर्म पर धन्यान लगाना है अगर कर्म सही होगा तो आने वाले समय में उसका फल निच्चित ही सही होगा क्यों की ऐसा माना जाता है की भाग्य कर्म ही धाशी है और हमारे हाथ में सिर्फ कर्म

अगर आप जिस भी तरह का कार्य कर करहे है जैसे की किसी परीक्षा की त्यारी कर रहे या फिर आप व्यापार कर रहे उसको करते रहे है कभी कभी उस महंत का फल मिलेगा जो फल मिलगा उसको आपको स्वीकारना होगा

 

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